गैर संज्ञेय रिपोर्ट 

November 28, 2023
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


विषयसूची

  1. परिचय
  2. अपराधों का वर्गीकरण
  3. वर्गीकरण का आधार
  4. संज्ञेय अपराध क्या हैं
  5. गैर - संज्ञेय अपराध क्या हैं
  6. एफ . आई . आर
  7. गैर - संज्ञेय रिपोर्ट
  8. गैर - संज्ञेय रिपोर्ट ( एनसीआर ) दर्ज करना क्यों महत्वपूर्ण है

परिचय

आपराधिक प्रक्रिया संहिता किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही के संचालन के लिए नियम ( सीआरपीसी ) देती है , जिसने किसी भी आपराधिक कानून के तहत अपराध किया है , चाहे वह आईपीसी हो या अन्य आपराधिक कानून।

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अपराधों का वर्गीकरण

अपराध की प्रकृति और गंभीरता के आधार पर उन्हें निम्नलिखित में से किसी भी शीर्ष के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है : 

  1. जमानती और गैर जमानती अपराध

  2. संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध।

  3. कंपाउंडेबल और नॉन - कंपाउंडेबल अपराध

 


वर्गीकरण का आधार

किसी अपराध के वर्गीकरण का आधार इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितना गंभीर है। प्रत्येक अपराध की सजा उसकी गंभीरता को तय करती है। गंभीर अपराध वे हैं जो कम से कम 3 साल के कारावास से दंडनीय हैं और इसलिए , संज्ञेय अपराध माने जाते हैं। जबकि सीआरपीसी में संज्ञेय शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है , और वर्गीकरण का निर्धारण करने के लिए कोई सटीक परीक्षण प्रदान नहीं किया गया है , यह व्यापक रूप से बताता है कि मौत की सजा , आजीवन कारावास या 3 साल से अधिक के कारावास से दंडनीय अपराध संज्ञेय अपराध होंगे।

इसके अलावा , पश्चिम बंगाल राज्य बनाम स्वर्ण कुमार गुहा और अन्य के मामले में , सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अपराध की प्रकृति का फैसला करने के लिए पुलिस को पूर्ण विवेक नहीं दिया जा सकता है। यह निर्धारित करने के लिए कि अपराध संज्ञेय है या नहीं , प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को नियोजित किया जाना चाहिए।

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संज्ञेय अपराध क्या हैं

प्रत्येक अपराध की सजा अपराध की गंभीरता पर निर्भर करती है। ऐसे अपराध जिनमें कम से कम 3 साल की कैद की सजा हो , गंभीर अपराध हैं और उन्हें संज्ञेय माना जाता है। धारा 2 ( सी ) के तहत आपराधिक प्रक्रिया संहिता , 1973 ( सीआरपीसी ) में कहा गया है कि एक अपराध जो मौत की सजा , आजीवन कारावास या 3 साल से अधिक के कारावास से दंडनीय है , संज्ञेय होगा।

संज्ञेय अपराध वे हैं जिनमें पुलिस बिना वारंट के आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जांच शुरू कर सकती है। आरोपी को गिरफ्तार कर निर्धारित समय पर कोर्ट में पेश किया जाता है। सीआरपीसी की धारा 154 के अनुसार , एक संज्ञेय अपराध के मामले में एक पुलिस अधिकारी को प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता होती है। हत्या , बलात्कार , चोरी , अपहरण , दहेज हत्या आदि संज्ञेय अपराधों के कुछ उदाहरण हैं। ये अपराध जमानती और गैर जमानती दोनों हैं।

 


गैर - संज्ञेय अपराध क्या हैं

कम गंभीर प्रकृति का अपराध असंज्ञेय माना जाता है।   सीआरपीसी की धारा 2 ( एल ) गैर - संज्ञेय अपराधों को परिभाषित करती है , जिसमें पुलिस के पास वारंट के बिना गिरफ्तारी का कोई अधिकार नहीं है। इनका उल्लेख भारतीय दंड संहिता की पहली अनुसूची में किया गया है और ये जमानती हैं। इन अपराधों में पुलिस बिना गिरफ्तारी वारंट के आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है और अदालत की अनुमति के बिना जांच शुरू नहीं कर सकती है। गैर - गंभीर अपराध जैसे हमला , धोखाधड़ी , जालसाजी , मानहानि , सार्वजनिक उपद्रव , आदि गैर - संज्ञेय अपराध हैं।

सीआरपीसी की धारा 155 के अनुसार , अगर किसी पुलिस अधिकारी को एक गैर - संज्ञेय अपराध के बारे में जानकारी मिलती है , तो उसे स्टेशन डायरी में मामले को दर्ज करना चाहिए और मुखबिर को मजिस्ट्रेट के पास भेजना चाहिए।   मजिस्ट्रेट से अनुमति मिलने के बाद ही पुलिस मामले की जांच शुरू कर सकती है। इसकी जांच पूरी करने के बाद कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की जाती है , जिसके बाद ट्रायल होता है।   यदि कोई मामला बनता है , तो अदालत गिरफ्तारी का अंतिम आदेश जारी करती है।

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एफ . आई . आर

जब किसी अपराध से सम्बंधित की जानकारी थाने में दी जाती है तो उस सूचना के आधार पर यदि मामला ज्यादा गंभीर ( जैसे - किसी को हथियार से मारना , हत्या , आदि ) होता है तो एफ . आई . आर दर्ज की जाती है और उसकी एक कॉपी शिकायतकर्ता को निःशुल्क दिया जाता है। एफ . आई . आर दर्ज हो जाने के बाद पुलिस उस घटना की जाँच प्रारम्भ कर उसकी रिपोर्ट सम्बंधित न्यायालय में पेश करती है।

 


गैर - संज्ञेय रिपोर्ट

जब पीड़ित द्वारा किसी घटना की जानकारी पुलिस स्टेशन में दी जाती है तो यदि मामला असंज्ञेय किस्म का हो अर्थात मामूली अपराध हो तो उसमें एफ . आई . आर   दर्ज नहीं कि जाति है बल्कि ( एन . सी . आर ) गैर - संज्ञेय रिपोर्ट दर्ज की जाती है और उसका कॉपी शिकायतकर्त्ता को दे दी जाती है। पुलिस द्वारा घटना की सूचना के आधार पर एनसीआर दर्ज करने के बाद , पुलिस मामले की खोज बीन में लग जाती है। जाँच और ख़ोजबीन के आधार पर पुलिस उस घटना से समबन्धित रिपोर्ट बनाती है और इस रिपोर्ट को न्यायालय में पेश करती है। यदि जाँच के दौरान चोरी या खोई हुई संपत्ति की रिकवरी हो जाती है , तो ऐसे में पुलिस उस संपत्ति को कानूनी औपचारिकताएं पूरी हो जाने के बाद शिकायतकर्त्ता को दे   देती है और यदि चोरी या खोई हुई संपत्ति खोजबीन के दौरान रिकवरी नहीं हो पाती तो ऐसे में पुलिस अपनी रिपोर्ट में संपत्ति की रिकवरी न हो पाने का रिपोर्ट न्यायलय के समक्ष दाखिल कर देती है।

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गैर - संज्ञेय रिपोर्ट ( एनसीआर ) दर्ज करना क्यों महत्वपूर्ण है

यदि किसी व्यक्ति की गाङी चोरी हो गयी हो तो उसकी सूचना पुलिस को देना अति आवश्यक होता है क्योंकि सूचना देने पर पुलिस एनसीआर   दर्ज करती है जिसमें घटना के बारे में लिखा होता है। यदि बाद में उस गाङी से किसी प्रकार का गलत उपयोग किया जाता है तो पीड़ित एनसीआर से अपना बचाव कर सकता है।





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